औरत, आदमी और छत , भाग 20
भाग,20
इतना स्नेह देख कर मेरी भी आँखें नम हो गई थी।मिन्नी का ये कहना कि पता नहीं मायके की कब जरूरत पड़ जाये,मुझे अंदर तक हिला गया था। उपर आकर हमनें मिन्नी का लाया खाना गर्म करके खाया था।कन्नु ने भी हमारे साथ ही खाया था। हम सब सोने की तैयारी में थे,आज मिन्नी कुछ जल्दी ही सो ग ई थी बातें करते करते ही ,कुछ थकी थकी सी भी थी वो।
मैं जब सुबह उठी तो कमरे का नजारा ही कुछ और था।साफ सुंदर व्यवस्थित, और ये क्या मिन्नी तो स्टोर से दूध बटर ब्रेड,और दाल चावल भी ले आई थी।इधर कुछ सब्जियाँ भी रखी थी,रीतिका अभी सो ही रही थी,साढे सात हो चुके थे।हाँ मिन्नी कहीं नहीं थी,मैने दरवाजा खोलकर देखा तो मिन्नी सीढी़ से आ रही थी।
कहाँ गई थी,इतनी सुबह, और ये सुबह सुबह राशन, क्या जरुरत थी,क्या मैं इतनी गैर हो गई हूँ, मुझे भी थोड़ा गुस्सा आया था।
नहीं नहीं नीरजा, बिल्कुल भी नहीं डियर, सुबह जल्दी आँख खुल गई थी सारा काम खत्म हो गया था तो टैरस पर खड़ी होकर देखा सामने वाला स्टोर खुला है।मैने सोचा ये काम भी कर लिया जाए।और अभी तो वो उस महिला आश्रम में कृष्णा आन्टी की बेटी मनीषा है न उस से बात करने ग ई थी कि रीति को दो घन्टे टयुशंस पढ़ा दिया करे ताकि अगली कक्षा के लिए कुछ तैयारी हो जायेगी।फिर ये सारा दिन यहाँ क्रेच में भी क्या करेगी।
तो ये आश्रम तक अकेली जायेगी।
नहीं नहीं बहना मनीषा ही यहाँ आ जायेगी, मेरी बात हो गई है,उसने कहा है दो से चार तक पढ़ा देगी।
दो घंटे इतना लम्बा समय,
नीरजा मैडम, वो साथ में इस को ड्राइंग, पेंटिंग भी सिखाएगी। दस दिन की बात है ,फिर तो इसका होस्टल खुल जायेगा
मैं समझ ग ई थी कि रीतिका आगे भी हास्टल में ही पढ़ेगी।
पर मैने मिन्नी को कुछ जताया नहीं था।
हम कमरे में आ ग ए थे ,रीति भी उठ गई थी।मिन्नी ने चाय रख दी थी।मैं बाथरूम चली गई थी।
मंमा मुझे आज रोटी बिल्कुल नहीं खानी,आज मुझे चावल ही खाने हैऔर वो भी पीली दाल के साथ।और मुझे क्रेच में नहीं रहना, मुझे सारा दिन आपके साथ रहना है।
पर सुबह सुबह चावल कौन खाता है डियर।आपको लंच में चावल और पीली दाल बना देंगे, और सुनो मैं तुमको अपने साथ ले कर जा रहीहूँ,वहाँ बाजार से तुम्हें ढेरों चीज दिलवाऊंगी।
पेन्टिंग कलर भी मंमा।
जी बिल्कुल और एक दीदी भी है जो आपको ये सब सिखायेंगी।अब आप तैयार हो जाये तो जल्दी से।
नीरजा, आटा बना रखा है, सब्जी भी तैयार है,तुम अपने लंच के लिए फुल्के सेक लो प्लीज़ और फिर नहा लो फटाफट फिर नाशता करेंगें, तब तक मैं रीति को तैयार कर दूं,और थोड़ा लिख लूं।
मिन्नी को बहुत जल्दी काम खत्म करने की आदत थी,पता ही नहीं चलता था कि काम समाप्त भी हो जाता था। मैं अपने लिए तीन फुलके बनाए तब तक वह रीति को तैयार कर चुकी थी।मैं नहा कर निकली तो चाय चूल्हे पर थी और मिन्नी तैयार होकर कुछ लिख रही थी ।
मिन्नी तुम अपना काम करो ,तब तक मैं चाय छान कर लाती हूँ।
थोड़ा सी मुस्कराहट आ गई थी उस के चेहरे पर।
नाश्ता कर के हम तीनों इकठ्ठा ही निकल पड़े थे।
समय यूं ही भागता जा रहा था,मुझे उन दोनों माँ बेटी के साथ रहना अच्छा लग रहा था,पर कहीं न कहीं मैं मिन्नी के भविष्य को लेकर चिंतित भी थी।रीति ड्राईंग औऱ पेंटिंग दोनो पर अपना हाथ आजमा रही थी,मिन्नी भी जल्दी आ जाती थी,उसकी कोशिश थी कि वो ज्यादा समय अपनी बेटी के साथ गुजारे।। आज मिन्नी को आये आठँवा दिन था,पर वीरेंद्र का कोई फोन या खुद वो नहीं आया था।मैने कन्नु से जिक्र किया ,तो वो बोली, हाँ मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा।
उस दिन रविवार था , मैं देर से उठी थी, किन्तु मिन्नी अपना काम निपटा कर टैरस पर अकेली बैठी चाय पी रही थी।हल्की बूंदाबांदी भी होरही थी, सभी सर्द मौसम और छुट्टी का आनंद उठाते हुए सो रहे थे।मैने भी उसे डिस्टर्ब करना उचित नहीं समझा। मैं ब्रश कर ही रही थी कि मिन्नी का फोन बज उठा,नवीता का फोन था। मैने थोड़ा आगे बड़ कर मिन्नी को फोन के लिए आवाज़ लगाई थी,पर उस का ध्यान शायद कहीं और था। तभी टैरस के पास वाली रमा दीदी ने मेरी आवाज सुन ली थी,उन्होंने मिन्नी के पास जाकर उसे बोला तो वो उठ कर आ गई थी।
क्या हुआ नीरजा?
तेरा फोन बज रहा था, नवीता का फोन था।
तभी फिर से घंटी बजने लगी थी,मिन्नी ने फोन उठाया था,वो बात कर रही थी पर उसकी बातों नहीं लग रहा था कि वो नवीता से बात कर रही है।मैने चाय बना ली थी ,थोड़ी मिन्नी के लिए भी बनाई थी।
थैंक्स डियर मेरी पहले वाली बिलकुल ठंडी हो गई थी,उसने फोन रखते हुए कहा था।
कुछ परेशान हो मिन्नी, गर उचित समझो तो बता सकती हो।
सही पकड़ा तुमनें, बहुत उहापोह में हूँ,नीरजा।
क्या हुआ, नवीता कुछ कह रही थी।
नहीं नवीता से तो बात भी नहीं हुई।यहाँ इस शहर से बीस किलोमीटर दूर एक स्कूल है,उन्होंने मुझे जाब के लिए आमत्रित किया है, स्कूल में हास्टल भी है,स्टाफ के लिए भी रहने की जगह है। वेतन भी यहाँ से कहीं ज्यादा है,गर मैं इसी शहर में रहती हूँ, तो यहाँ से स्कूल की वेन की सुविधा है।
वीरेंद्र क्या कहते हैं।
उस से मेरी कोई बात ही नहीं हुई है इस सिलसिले में।
तुम्हें क्या लगता है मिन्नी?
नीरजा पता नहीं क्यों मुझे तो यही ठीक सी लग रही है ,ट्रस्ट का स्कूल है ,स्थायी नौकरी हे,गर सरकारी नौकरी न भी मिले तो घाटे का सौदा नहीं है और फिर सबसे बड़ी बात मेरी बेटी रोज मेरी आँखों के आगे रहेगी ,चाहे मुझे उसे हास्टल में भी रखना पड़े।
मिन्नी ने खुद अपनी ही जुबां से ये सच्चाई भी कबूल थी कि वो रीति को अपने पास नहीं रख पायेगी।
सोच लो मिन्नी टीचिंग जाब अच्छी भी रहती है,समयभी बचता है,छुट्टी भी अपनी रहती है।
सही कहती हो यार इस नौकरी में तो न दिन का पता न रात का,तो फिर भेज दूं उनको अपनी स्वीकृति?
वैसे मिन्नी तुमने यहाँ प्रार्थना पत्र भेजा था क्या।
नहीं यार वो छब्बीस जनवरी वाले दिन इनकी ट्रस्टी मैम मिली थी,उन्होंने नम्बर लिया भी थाऔर अपना नम्बर दिया भी था।बस फिर उनका फोन आया था।मैने अपना बायोडाटा भेजा था।फिर इनका फोन आया था।आज फिर फोन आया है,कहरही हैं नया सत्र शुरू होने वाला है।जल्द जवाब दो।
नवीता का भी यही कहना है कि हाँ कर दो,और अगले सत्र से रीति को भी वहीं रख लेना।
तो फिर हाँ क्यों नहीं कर देती, और सुनो नवीता से भी बात कर लो उसका फोन आया हुआ था।
नवीता से बात करके मिन्नी ने बताया कि वो देहरादून से आ चुकी है ,रीति को बुला रही है।नया सत्र भी शुरू हो गया है।
मैं एक बार फील्ड में जाकर रीति को आज ही छोड़ आती हूँ, फिर कल इस स्कूल में जाकर मिल लेती हूँ।
रीति भी उठ गई थी, मिन्नी भी तैयार हो गई थी,रीति की पैकिंग मैने की थी ,मिन्नी के बताने के हिसाब से।
मिन्नी रीति को लेकर चली गई थी। शाम के सात बज चुके थे,मिन्नी अभी पहुंची नहीं थी। हाँ उस का फोन जरूर आया था कि बस खराब हो गई है रास्ते में उसे पहुंचते पहुंचते आठ बज जायेंगे।
मिन्नी ने स्कूल में जाकर औपचारिक रूप सै साक्षात्कार भी दिया था। उसका परिणाम साकार त्मक ही रहा था।उसनें अखबार की नौकरी से रिजाईन डाल दिया था,पर एक महीना उसे और इंतजार करना था नियमानुसार,वेसे तो तीन महीने का रिजाईन क्रम होता है पर उन ट्रस्टी मैडम ने मिन्नी को बोल दिया था की गर तीन महीने का वेतन जमा करवाना पड़े तो हम भर देंगें, पर बात एक महीने के वेतन और एक महीना काम पर आकर रूक गई थी।
आज शाम मिन्नी शायद बाहर ही गई हुई थी कि वीरेंद्र आया था ।नीचे से कन्नु आई थी उपर,उसी ने बताया था कि वो बाहर गाड़ी में है।
मिन्नी को फोन क्यों नहीं कर लेते वो।मैने कहा था।
उसका फोन बंद आ रहा है।
पर मुझे भी नहीं पता कि वो कहाँ है, मैं आफिस से अभीआई ही हूँ।
कन्नु ने जाकर बता दिया था,कन्नू बोली कि वीरेंद्र.भाई तो महाराष्ट्र गया हुआ था।अभी आया ही है।
उस को आते ही बोलना फोन करे मुझे, मै़ ले जाऊँगा।कहकर वीरेंद्र चला गया था।
मैं और कन्नु बैठे सोचते रहे कि कह़ी कोई न कोई कसक है दोनों के बीच,जो दिख तो नहीं रही,पर उसका अस्तित्व गहरा है। आठ बजने को आए थे, मिन्नी अभी त क नहीं आई थी।पता नहीं कहा रह गई थी,तभी कन्नु का मोबाईल बजा था वीरेंद्र का फोन था।
भाई अभी नहीं पहुंची है मिन्नी, आते ही बात करवातीं हूँ, फोन भी ब़द आ रहा है।
वीरेंद्र कुछ नहीं बोला था,हम भी परेशान से अपने अपने खाने की तैयारी में जुट गए थे।
रात के नौं बज गए थे मिन्नी का कोई पता नहीं था।मैने भी खाना खा लिया था,कन्नु भी सोने चली गई थी।
साढे नौं बजे के करीब थोड़ी सी आहट और हल्की सी दस्तक हुई थी,मिन्नी अंदर आ गई थी,उसके हाथ पर पट्टी बंधी हुई थी।
मिन्नी क्या हुआ, ये क्या है।
कुछ नहीं नीरजा, सब बताती हूँ पहले मैं नहा लूं, बहुत परेशान हूँ।
तुम प्लीज मेरा मोबाईल चार्जिंग पर लगा दो,कब से ब़द पड़ा
है।
तुम नहाना बाद में पहले वीरेंद्र को फोन कर लो , वो दो बार आ चुकें हैं और कन्नू के मोबाईल पर फोन भी कर चुके हैं।
रात के दस बजने वाले हैं वो तो कह देंगे मैं लेने आ रहा हूँ, पर इ स वक्त फिर नीचे जाना हास्टल के नियमों की धज्जियां उड़ाना है,तो तुम ये करो फोन को ब़द ही रहने दो और चार्जिंग पर लगा दो।
वो नहाने चली गई थी।
मुझे उसकी बात वाजिब भी लगी थी,और हैरान करने वाली भी थी।
वो नहा कर आई तो बोली कुछ खाने को है क्या?
है ना दलिया विद वेजिटेबलस।
वो किचेन म़े घुस गई थी, दलिया गरम कर के उसनें खाना शुरू किया था।
आज पता है नीरजा क्या हुआ,
क्या हुआ?
आज एक आनर किलिंग का केस होते होते बच गया।
मतलब?
अरे यार मेरी जो परिचित है न पुलिस विभाग मेंं उसी कि फोन आया था कि मेडिकल पहुंच जाओ,कोई ऑनर किलिंग का केस है,वहाँ हम लोग पहुंचे तो कहानी ही बदल गई,, पुलिस के रहते हुए लड़की के परिवार जन दोबारा पहुंच गए, और फिर जो सीन हुआ, वो बिल्कुल फिल्मी था,वो जोड़ा एक दूसरे की बाहों मे सिमट कर खड़ा हो गया, बोले इकठ्ठे मार दो दोनों को।फिर पुलिस ने भी बीच बचाव किया और गाँव के कुछ मौजिज लोग दोनों पक्षों से पहुंचें तो मामला शान्त व साकारात्मक हो गया।
अब वो जोड़ा कहाँ है?
परसों शादी है उनकी दोनों अपने अपने घर ग ए हैं,जब तक शादी नहीं होती पुलिस सुरक्षा भी मिलेगी दोनों को।लड़का लड़की दोनो टीचर हैं।
एक ही गाँव के हैं क्या।
अरे नहीं सौ किलोमीटर का फासंला है।
तो फिर क्या समस्या थी।
वहीं समस्या जो अपने समाज में होती है कि शादी माँ बाप की मरजी से हो।
चलो अंत भला तो षब भला।और ये तुमको चोट कैसे लगी,क्या तुम भी किसी पक्ष में थी।
अरे नहीं यार मेरा पैर फिसल गया और नीचे कुछ काँच जैसा गिरा हुआ था, इसलिए पट्टी करवानी पड़ी।
पौने ग्यारह हो गए थे ,मिन्नी ने फोन शुरू किया ही था कि उसके फोन की घंटी बज गई थी।
लो ये साहब भी जाग ही रहे थे,और मिन्नी फोन लेकर बाहर चली गई थी।
कहा थी अब तक, फोन क्यों बंद था।
रिपोर्टिग के लिए मेडिकल गई थी, फोन की बेटरी खत्म थी।अभी हास्टल पहुंची ही हूँ।
मैं लेने आ रहा हूँ, बाहर मिलना।
बिल्कुल नहीं ये हास्टल है,कोई मेरा मायका नहीं कि जब आपकी इच्छा होगी मुझे लेने आ जाओगे। वेसे आज आप को मेरे फोन की और मेरी बड़ी चिंता हो रही है,गए हुए तो आप को शायद चौदह दिन हो ग ए न।
मेरे उधर से लाईन ही नहीं लग रही थी,और फिर तुम भी तो कर सकती थी,तुम्हारे पास भी तो मोबाईल है ना।
हो सकता है मेरे इधर से भी लाईन ही न लग रही हो।
तुम कुछ नाराज लग रही हो मिन्नी।
जी बिल्कुल भी नहीं, अब बहुत समय हो चुका है मैं सोने जा रही हूँ, आप भी सो जाये।
क्रमशः
औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिता विम्मी।
रतन कुमार
07-Sep-2021 01:22 PM
बहुत बढ़िया कहानी है mam आपकी बधाई ho apko
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